Scholar / Kavi Parichay

Kavivar Vrundavandasji

कविवर वृंदावनदास जी

कवि वृंदावनजी का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहाबाद जिले के बारां नामक गांव में संवत 1842 को हुआ था।
कवि के पिता का नाम धर्मचंद और माता का नाम सिताबी था। यह गोयल गोत्रीय अग्रवाल थे। कवि के परिवारजन बारां छोड़कर काशी में आकर रहने लगे थे, उस समय कवि की आयु 12 वर्ष थी। इनकी पत्नी रुक्मणी बहुत धर्मात्मा और पतिव्रता थीं। वृंदावनजी की ससुराल में बहुत संपन्नता थी और उनके यहां टकसाल का काम होता था, इसमें सिक्के तैयार किए जाते थे। एक बार वृंदावन जी संयोग से ससुराल गए हुए थे और दुकान पर बैठे हुए थे तभी एक अंग्रेज अधिकारी ने उनके ससुर से कहा कि हम तुम्हारा कारखाना देखना चाहते हैं तो वृंदावन जी ने उसे डांट कर भगा दिया, जिससे वह अंग्रेज नाराज हो करके वहां से चला गया। संयोगवश कुछ दिनों के बाद वही अंग्रेज काशी का कलेक्टर होकर आया और वृंदावन जी उस समय सरकारी खजांची के पद पर आसीन थे। उस अंग्रेज ने वृंदावन जी को पहचान लिया और उनसे बदला लेने की भावना हुई तब झूठे केस में फंसाकर उन्हें 3 वर्ष की जेल की सजा दिलवा दीऔर उन्होंने उस सजा को शांतिपूर्वक स्वीकार किया। एक दिन प्रातःकाल वही अंग्रेज कलेक्टर जेल का निरीक्षण करने आए, उस समय वृंदावन दास जी स्तुति पाठ कर रहे थे वह आशु कवि थे और स्वयं स्तुति बनाते हुए भैरवी राग में गा रहे थे, उस समय कविवर की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। उस समय कलेक्टर ने उन्हें बार-बार पुकारा परंतु पंडित जी जिनेंद्र भक्ति में इतने लीन थे कि उनका ध्यान ही नहीं गया। बाद में कलेक्टर ने सिपाही के द्वारा वृंदावनदासजी को बुलाया और पूछा कि तुम क्या गा रहे थे ? तब वृंदावनजी ने उत्तर दिया कि मैं जिनेंद्र भक्ति कर रहा था और उन्होंने  वह भक्ति सुनाकर उसका अर्थ भी समझाया। यह सुनकर कलेक्टर बहुत प्रसन्न हुए और घटना के 3 दिन बाद ही उन्हें जेल से मुक्त कर दिया गया। तभी से वह विनती संकट मोचन स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इनके दो पुत्र थे- अजय दास और शिखरचंद।


कविवर वृंदावन दास जी की निम्नलिखित रचनाएं प्राप्त हैं -
1. प्रवचनसार वचनिका
2. तीसचौबीसी पाठ 
3. चौबीसी पाठ
4. छंद शतक
5. अर्हतपाशा केवली
6. वृंदावन विलास
वृंदावन की रचनाओं में भक्ति की उदात्त भावना धार्मिक सजगता और आत्म निवेदन विद्यमान है। इनकी रचनाएं संगीत के साथ पाठक के हृदय में आशा का संचार करती हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि पंडित वृंदावन जी की रचनाएं जनसामान्य के लिए हैं और इनकी द्वारा रचित अनेक पूजन आज भी दिगंबर जैन मंदिरों में प्रतिदिन गाईं  जाती हैं।